कल शाम को पिछले कुछ महीने की जमा-पूंजी पर एक बार फिर से हमला हुआ, और एक बार फिर से मेरी तनख्वा अप्रत्याशित खर्चे की भेंट चढ़ गई और मेरे हाथ में रह गया मुझे मुहँ चिढाता हुआ "Zero Balance", तब मुझे मजबूर होकर हिन्दी फ़िल्म से ये शेर चुराना पड़ा (भावनाओं को समझो, वो मेरी अपनी हैं) :-
अपने हिस्से का खर्च तो हम कर चुके चुन्नी बाबु,
बस कुछ बचत का ख्याल करते हैं
क्या कहें इन दुनिया वालों को,
जो आखरी पैसे पर भी ऐतराज़ करते हैं १
और जब इतने से भी दिल की भड़ास पूरी नही हुई तो एक और शेर चुरा डाला......गौर फरमाइयेगा.....
मैंने जब जब कुछ बचाने की पूरी शिद्दत से कोशिश की है
सारी कायनात ने उसे खर्च करवाने की साजिश की है २
(फिर दिल में ख्याल आया- "नौकरी अभी बाकी है मेरे दोस्त" )
अपने हिस्से का खर्च तो हम कर चुके चुन्नी बाबु,
बस कुछ बचत का ख्याल करते हैं
क्या कहें इन दुनिया वालों को,
जो आखरी पैसे पर भी ऐतराज़ करते हैं १
और जब इतने से भी दिल की भड़ास पूरी नही हुई तो एक और शेर चुरा डाला......गौर फरमाइयेगा.....
मैंने जब जब कुछ बचाने की पूरी शिद्दत से कोशिश की है
सारी कायनात ने उसे खर्च करवाने की साजिश की है २
(फिर दिल में ख्याल आया- "नौकरी अभी बाकी है मेरे दोस्त" )