शोभित जैन
कल शाम को पिछले कुछ महीने की जमा-पूंजी पर एक बार फिर से हमला हुआ, और एक बार फिर से मेरी तनख्वा अप्रत्याशित खर्चे की भेंट चढ़ गई और मेरे हाथ में रह गया मुझे मुहँ चिढाता हुआ "Zero Balance", तब मुझे मजबूर होकर हिन्दी फ़िल्म से ये शेर चुराना पड़ा (भावनाओं को समझो, वो मेरी अपनी हैं) :-


अपने हिस्से का खर्च तो हम कर चुके चुन्नी बाबु,
बस कुछ बचत का ख्याल करते हैं
क्या कहें इन दुनिया वालों को,
जो आखरी पैसे पर भी ऐतराज़ करते हैं १


और
जब इतने से भी दिल की भड़ास पूरी नही हुई तो एक और शेर चुरा डाला......गौर फरमाइयेगा.....


मैंने जब जब कुछ बचाने की पूरी शिद्दत से कोशिश की है
सारी कायनात ने उसे खर्च करवाने की साजिश की है २

(फिर दिल में ख्याल आया- "नौकरी अभी बाकी है मेरे दोस्त" )
शोभित जैन

जब हम उदास या अकेले होते हैं तो यादों की टॉर्च लेकर बचपन के गलियारों में खो जाने को दिल करता है एक बार
उनही गलियारों में भटकते-भटकते और जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल "वो कागज़ की कश्ती " गुनगुनाते हुए स्वतः ही हाथ चल पड़े और तुकबंदी हो गई

अगर मेरी यह छोटी सी कोशिश आपके दिल में भी कोई भूली बिसरी याद और होंठों पर मुस्कान बिखेर दे तो भले ही टिपण्णी देना पर कुछ फुर्सत के पल उन यादों को ज़रूर देना
बकवास बंद, ग़ज़ल शुरू :-
ये प्रोफाइल भी ले लो , ये पैकेज भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी कंपनी॥
मगर मुझको लौटा दो, खाकी वो वर्दी,
वो स्कूल की मस्ती, वो यादें सुहानी 1

वो स्कूल की सबसे पुरानी निशानी
वो टंकी जहाँ से बच्चे लाते थे पानी,
वो पानी के संग में बाथरूम को जाना
बिना नहाये फिर बाहर को आना,
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई ,
वो विनोद तिवारी, वो अश्विन गिलानी

वो स्कूल की मस्ती, वो यादें सुहानी 2

वो पीटी परेड से बच कर निकलना,
BMW के समोसे पर दिल का मचलना
वो ड्रिल के पहले से एडी पटकना,
वो ग्रेस के पहले ही केक झपटना
वो PREP के टाइम की प्यारी सी नींदें,
वो गालों पर सीनियर के गुस्से की निशानी

वो स्कूल की मस्ती, वो यादें सुहानी

कड़ी धुप में वो आउटिंग निकलना,
वो झंकार, वो आकृति पीटी वीटी भटकना
वो ICH में जाकर डोसा उडाना ,
वो कॉमिक वाले पर उधारी चढाना
वो बनारसी की चाट में चटनी का होना,
वो चोरी की रोटी, चार दिन पुरानी
वो स्कूल की मस्ती, वो यादें सुहानी

ये प्रोफाइल भी ले लो , ये पैकेज भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी कंपनी॥
मगर मुझको लौटा दो, खाकी वो वर्दी,
वो स्कूल की मस्ती, सात साल की कहानी


आपका :- २६३५


शोभित जैन

उस दिन जब 'चौथे स्तम्भ' ने बताया और दिखाया,
अपने भाइयों का बहता खून , तो बहुत गालियाँ दी
उन दहशतगर्दों को....

फिर अगले दिन 'सिर्फ़ उन्होंने' उजागर कीं
वो खामियां जिनके कारण वो हमारे घर में घुस पाए,
अब मेरी गालियाँ का रुख बदल गया था...

फिर 'सबसे तेज़' के माध्यम से देखा प्रजातंत्र के
कर्णधारों की नपुंसकता और बेलगाम जुबान,
और मैं लग गया 'नेता' से बड़ी किसी गाली की खोज में....

पर जब 'वो' चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे,
आतंक की जड़ो को, जो छिपी हैं॥
दुबई में बैठे आका के नेटवर्क में....
पड़ोस में स्थित किसी जेहादी शिविर में....
या पड़ोस के किसी खुफियातंत्र के
खुराफाती दिमाग में....

तब मैं कुछ देर के लिए ख़ुद में खो गया,
'आतंक की असली जड़ो' को तलाशने

आज मैंने किसी को गाली नहीं दी.....
आख़िर ख़ुद को गाली देना आसान नहीं होता

रचनाकार :-
एक गैरजिम्मेदार नागरिक...
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