शोभित जैन
बेपरवाह हैं वो अपने हुनर की कीमत से,
बस यही एक चीज़ उन्हें नायाब बना देती हैं ||
शोभित जैन
दिल फिर से धडकने को तैयार ना होता ,
नज़रें जो ना मिलती , तो प्यार ना होता

कुछ तो खता है, तेरी खामोश रजामंदी की भी,
वरना इश्क का भूत, सर पे सवार ना होता

उँगलियों की उलझन का काला जादू चल गया,
भला-चंगा बंदा भला फिर यूं बेजार ना होता

तिरछी निगाहों का घाव है , भरते भरते भरेगा ,
तलवार से मारा होता तो इतना असरदार ना होता

डाक्टर से दोस्ती अब उम्र भर निभानी है ,
कुछ और कहती लकीरें, तो मैं बीमार ना होता