शोभित जैन
तुमने मेरे सपनों को समझा ,
मेरे करीबी , अपनों को समझा !!

पैदाइशी फितरत को समझा ,
तारे, राशी , नक्षत्र को समझा !!

खामोश उदासी, तन्हाई को समझा ,
ज़माने की रुसवाई को समझा !!

सीमायें समझी , हक को समझा ,
फ़िज़ूल सी बक-बक को समझा !!

एक बेचारा दिल बच गया ,
जिसको छोड़कर सबको समझा !!
शोभित जैन

दिल को रौंदते हैं जो हर रोज़ पैरों तले ,

उन्हें आज भी फूल के टूटने पर दर्द होता है !!

शोभित जैन

मिलो तो सीने में समां जाना, ज़माने को भूलकर ,

कब से मेरी बाँहों का घेरा उदास है ||

शोभित जैन

हसरत मुद्दतों से है कि अपना भी परिवार हो ....

साथ में हो अपनी "परी " और अच्छा सा "BAR" हो ||

शोभित जैन
तेरी इनायतों का कहाँ तक हिसाब करें 'शोभित'
बेनाम आंसू थे, तूने नाम दे दिया ||
शोभित जैन
अश्कों के हर कतरों को पलकों में छिपाते हैं ,
हम वो शख्स हैं जो मायूसी में मुस्काते हैं !!
कोई लाख सितम ढाए तो फर्क नहीं पड़ता ,
हम तो रौशनी का त्यौहार भी अमावस्या को मानते हैं !!!