शोभित जैन
दिल के एक कोने में  इतना अन्धकार रहा  था  ।।
कि, उम्मीद के रोशनदान को भी ये नकार रहा  था  ।।
शोभित जैन
मुझे पिज्जा नहीं भाता मैंने ज्वार चखा है ,
माटी की खुशबू को जेहन में संभाल रखा है |
इंसान हूँ इंसान को इंसान समझता हूँ,
इसीलिए तो तखल्लुस अपना
"गँवार" रखा है ||