दो साल पुरानी बात है जब मैं रायपुर से एक दोस्त की बहन की शादी अटेंड करके लौट रहा था...बोरियत से बचाने के लिए एक किताब भी साथ में थी..पर किस्मत शायद मुझपर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी.. क्योंकि कुछ ही स्टेशन के बाद पूरी ट्रेन पर विभिन्न राज्यों की बॅडमिंटन टीमों ने कब्जा कर लिया .. और अलग अलग डिब्बों के हिस्से आए अलग अलग राज्यों के खिलाड़ी... मेरे हिस्से (मेरे डिब्बे में) आए हरियाणा के छोरे, पंजाब के पुत्तर और कश्मीर की कलियाँ... थोड़ी देर सब कुछ सामान्य चलता रहा, फिर शुरू हुआ गाने- बजाने और शेरो-शायरी का दौर....बस फिर क्या थी थोडी देर में हमने भी अपनी टूटी फूटी शायरी से उनके बीच अच्छी जगह बना ली... ख़ैर शाम तो अच्छी बीती और खाना खाकर हम अपनी बर्थ पर आ गए पढने के लिए... पर ये क्या किताब की जगह डायरी क्यूँ हाथ में आ गई ... शायद ये उन दो निगाहों का असर था जो बरबस ही तीन चार बार मेरी निगाहों से टकरा गई (सिर्फ़ यूँ ही..बिल्कुल वैसे ही जैसे चलते फिरते हजारों लोगो से टकराती हैं )... पर एक कवि का क्या है... कल्पना ही तो करनी थी सो कर डाली... और कुछ ही समय में एक कविता लिख ही डाली... और सुबह भोपाल पर ट्रेन से उतरने से पहले मोहतरमा को थमा भी दी... उसके बाद क्या हुआ कृपया पूछना मत ...मैं बता नहीं पाउँगा (क्यूंकि मुझे भी नहीं मालूम...मैं तो ट्रेन से उतर गया था) .... अब इतना लिख ही दिया है तो वो कविता भी आप सबके सामने पेश कर देता हूँ :-
हसरतों को समझो नही अब होश रहने दो,
निगाहें बात करती है लबों को खामोश रहने दो !!
आवारा हूँ मैं, आवारगी आदत मेरी,
पहचान दुनिया में यही शायद मेरी,
इकरार न करो, खानाबदोश रहने दो॥
निगाहें बात करती है लबों को खामोश रहने दो !!
धीरे-धीरे बात आगे बढ़ जायेगी
आशिकी अपनी हद से गुज़र जायेगी,
आशिक की हसरत को सरफरोश रहने दो
निगाहें बात करती है लबों को खामोश रहने दो !!
निगाहें बात करती है लबों को खामोश रहने दो से याद आया "" मुमकिन है कल जुबानों कलम पर हों बंदिशे ,आँखों को गुफ्तगू का सलीका सिखाइए ""आवारगी की आदत के साथ खानाबदोश शब्द बहुत ही उपयुक्त है /आपने तो निर्देश दिया था कि ""उसके बाद क्या हुआ मत पूछना "" और आप ही ने कविता में बता भी दिया कि बात आगे बढ़ जायेगी /खैर जो हुआ अच्छा हुआ -जो होगा वह भी अच्छा ही होगा
तुम तो यार मोहतरमा के दिल की गहराई में उतर गए ....वाकई जादू कर दिया होगा इस कविता ने
I know the story...its really good n holds true when we say tht ppl do talk with eyes..a short and sweet construct
यूँ ही कोई मिल गया था ..वाली बात कह दी आपने ..बहुत सुन्दर कविता लिख दी
शोभित जी
सच कहो ये किस्सा सही है या.......यहाँ भी कल्पना का जादू चलाया है आपने.
अगर सच है तो वाकई आपकी कलम का जादू चल गया होगा, मेरा दावा है यह.
बहुत खूबसूरत बात लिखी है, हंसी, ठिठोली और शेरो शायरी के बाद तो ये और भी असर करेगी
badiya post hai. shubhkamna.
Yaar agar tumne ye kavita use de di thi to fir jo zaroor udhar bhi kuch-kuch hua hi hoga...
....'nighahein baat karti hain lab khamosh rehne do'
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Badhiya!!
shobhit ji
aap meri rachnaaon ko isliye gahre tak samajh pa rahe ho ki aap svayam ek behatreen rachnakar hain, aap rachnadharmita ke us marm ko samajhte ho jiske liye rachnakaar rachna karta hai.
aapki pratikriya se mera utsaah badhta hai, dhanyavaad
uska ghar, pata, thikaana poochha hota to aaj whaan naheen hote, jahaan ho.