तुमने मेरे सपनों को समझा ,
मेरे करीबी , अपनों को समझा !!
पैदाइशी फितरत को समझा ,
तारे, राशी , नक्षत्र को समझा !!
खामोश उदासी, तन्हाई को समझा ,
ज़माने की रुसवाई को समझा !!
सीमायें समझी , हक को समझा ,
फ़िज़ूल सी बक-बक को समझा !!
एक बेचारा दिल बच गया ,
जिसको छोड़कर सबको समझा !!
मेरे करीबी , अपनों को समझा !!
पैदाइशी फितरत को समझा ,
तारे, राशी , नक्षत्र को समझा !!
खामोश उदासी, तन्हाई को समझा ,
ज़माने की रुसवाई को समझा !!
सीमायें समझी , हक को समझा ,
फ़िज़ूल सी बक-बक को समझा !!
एक बेचारा दिल बच गया ,
जिसको छोड़कर सबको समझा !!
खूबसूरत शिकायत!! शानदार रचना!!!
उफ़!बस सब कुछ समझा
मगर जिसे समझना चाहिये था
उसे ही ना समझा
हाँ... ये अक्सर होता है... जिसे समझना चाहिए लोग उसी को नहीं समझते... बेहद सुन्दर रचना...
सुज्ञ जी , वंदना जी , पूजा जी
धन्यवाद ....कम से कम आप लोगो ने तो समझा ....
dil tera khjana hai 1 pak mohabbat ka taha pa na ska koi sagar hai tu ulfat ka.