शोभित जैन
मुझे पिज्जा नहीं भाता मैंने ज्वार चखा है ,
माटी की खुशबू को जेहन में संभाल रखा है |
इंसान हूँ इंसान को इंसान समझता हूँ,
इसीलिए तो तखल्लुस अपना
"गँवार" रखा है ||
3 Responses
  1. Neha Jain Says:

    nice.........kafi achcha likhte hain aap.



  2. बेनामी Says:

    nice


एक टिप्पणी भेजें