आज रह रह कर किसी कि कही हुई दो पंक्तियाँ जेहन में आ रही है :-
इंसानियत का तकाजा किताबों में पढ़ा था,
आज किसी की मौत भी खबर बन गयी है ||
पूरी बस्ती, हर मंजर , हर नज़ारा धुला सा है
और साँस लेने को सारा , आसमा भी खुला सा है
फिर जाने किस याद में साँस मेरी जमी सी है....
सब कुछ है यहाँ , पर शायद कुछ कमी सी है ................
जन्नत के सुख कदमों पर है , और अरमान सारे बाहों में
कामयाबी का भी हर रास्ता बिछा हुआ है राहों में
फिर क्यों आंखों की कोरो में ठहरी कुछ नमी सी है ....
सब कुछ है यहाँ , पर शायद कुछ कमी सी है ................
उल्लास के आधार पर दिन जाते हैं गुजरते ,
और रात के स्वपन सारे , मखमली गद्दों पर लरजते
फिर धड़कन में क्यों बैचेनी जमी सी है ...
सब कुछ है यहाँ , पर शायद कुछ कमी सी है ................
कमी शायद उन रिश्तों की है जो हमारी जान हैं ,
ये बात उन रिश्तों की है , जो इंसान की पहचान हैं ...
वो रिश्ते जिसमे एक माँ बिन कारन भूखी रहती है ,
और बाप का गला रुधता पर आँखें सूखी रहती हैं....
दिन, महीने, और घंटे गिनती , रिश्ता उस बहन से है
अपनेपन का अहसास दिलाता , रिश्ता इस वतन से है
दोस्तों के ठहाकों से रिश्ता, रिश्ता सजती महफ़िल से ,
और लौटने की (विदेश से) दुआ मांगता , रिश्ता है हर एक दिल से
पैर छूते छोटो से रिश्ता , आशीष देते बड़ों से है ,
और सबसे बढ़कर के रिश्ता , रिश्ता अपनी जड़ो से है
दुआ मांगता हूँ में रब से , इन रिश्तों को में भूल न जाऊं
और टूटकर अपनी जड़ से , सदा के लिए दूर न जाऊँ