शोभित जैन
ये शीर्षक मेरी ग़ज़ल के लिए नहीं मेरे लिए है...क्यूंकि ब्लॉगजगत में मेरा आना जाना बरसाती मेढकों कि तरह ही है ...क्या करें इस खानाबदोश ज़िन्दगी में कभी कभार ही अपने लिए समय चुरा पाते हैं फिर भी लगता है ये बरसात अगले कुछ महीने चलती रहेगी ... उसके आगे कुछ नहीं कह सकता ... तो चलिए फिर से शुरुआत करते हैं इस ग़ज़ल (ग़ज़ल सिर्फ़ कहने को , मात्रा - व्याकरण का ज्ञान नहीं है ना ) के साथ .....


जिनसे उम्मीद थी , वो दिलासा दे रहे
बुरे दिन फिर नज़र आने लगे !!!!

हमने तो सच से परदा उठाया था ,
दोस्त नहीं हो सकते, जिन्हें ताने लगे !!!!

बाहें फैलाकर चंद खुशियाँ माँगी थीं
'गम' ज़माने भर के समाने लगे !!!!

गाय, चूल्हा , तालाब और 'वो'
उफ़, कैसे कैसे ख्वाब आने लगे !!!!

कुछ और अज़ीज़ हो गए ज़माने के,
जब से परदेश में कमाने लगे !!!!


चिट्ठाचर्चा भी देखें : http://anand.pankajit.com/2009/10/blog-post_17.html
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16 Responses
  1. बहुत अच्छी रचना है...आप लिखते रहें...ग़ज़ल में व्याकरण जरूरी है लेकिन भाव अधिक जरूरी हैं, जो आपके पास हैं. लिखते रहेंगे तो व्याकरण स्वयं सुधर जायेगी...आप बहुत अच्छा लिखते हैं...
    नीरज


  2. बहुत लाजवाब लिखा है शोभित जी ........
    आखिर का शेर तो कमाल का है ...... सच की अभिव्यक्ति है ...... वस्तिविकता है जो मैंने भी महसूस की है ........


  3. गाय , घोंसले , तालाब और 'वो '
    उफ्फ़ कैसे-कैसे ख्वाब आने लगे ..

    ये बढ़िया लगा शोभित जी .कुछ अलग हट के .....बहुत खूब....!!

    ...आपके पास हुनर है ...नीरज जी सही कहा ....!!


  4. बेनामी Says:

    कहाँ थे भाई इतने दिन ?


  5. manu Says:

    हाँ,
    गजल कहे जाने में कसर तो है...
    पर हो जायेगी एक दिन..
    ऊपर नीरज जी ने सही कहा है एकदम..


  6. Rajeysha Says:

    गाय, चूल्‍हा, तालाब और वो


    सब याद आता है गुजर जाने के बाद


    पर हमें आपकी शोले की अगली कड़ी का इंतजार था इस गजलनुमा का नहीं।


  7. आहा वाह..वाह
    क्या बात है ....
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल और शेर हैं
    अब भैया ई ब्याकरण का नालेज हमका नाही है
    मनोभाव सुन्दर तो सब सुन्दर

    बहुत दिन बाद दिखे .... कहाँ खो गए थे जनाब ?


  8. छोटी बहर की इस नायाब गजल के लिए बधाई!


  9. गाय, चूल्हा, तालाब और... बहुर करारा व्यंग्य किया है. गजल में शास्त्र ज्ञान का न होना खटक भले पैदा करे लेकिन विचारों का प्रवाह तो मजबूत है.
    'वापसी' मुबारक. मैं उम्मीद करता हूँ शायद एक बार फिर सब कुछ भूल कर मिलने-मिलाने के दिन आ गये हैं. अच्छा यह भी है की आप देश में हो. मैं इन दिनों फ्लू का शिकार हो गया हूँ, नेट पर जाने की इजाजत नहीं मिल रही है. चोरी से आया हूँ, आपकी मेल देखी और स्वयं को रोक पाना सम्भव नहीं हो सका.


  10. शोभित जी मेरे ब्लॉग पर आने और सुंदर टिपण्णी के लिए आभार
    बहुत अच्छी रचना है आपकी
    बधाई स्वीकारें


  11. kumar zahid Says:

    शेर ही शेर थे जो खजाने लगे।
    देखिए दोस्त सब गुनगुनाने लगे।

    nice


  12. शोभित भैया !
    बहुत अच्छे . लगे रहो. भावों की गहराई उल्लेखनीय है .
    jogeshwar garg


  13. waah kya teekha vayang hai
    jab se pardesh mein kamane lage hain


  14. गाय चूल्हा तालाब और वो ..बिम्बो का सही इस्तेमाल है



  15. सागर Says:

    बहुत उम्दा... दोस्त ...


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