शोभित जैन
निंदक निएरे राखिये, आँगन कुटी छबाए !!
बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुभाए !!

आदरणीय आनंद जी ,

आपकी आलोचनात्मक टिपण्णी के लिए तहे दिल से आभारी हूँ , यूँ लगा की ब्लॉगजगत में मुझे भी कोई शुभचिंतक मिल गया है || आपकी टिपण्णी में चार बातें गौर करने लायक हैं ||

१) गज़ल की टांग खीचना : मैं आपका इलज़ाम सरमाथे स्वीकार करता हूँ क्यूंकि मैं सच में गज़ल की परिभाषा से अनभिज्ञ हूँ || मुझे गज़ल के व्याकरण के अभाव का ज्ञान है और इसलिए प्रयास में रहता हूँ की शायद लिखते लिखते ये हुनर कभी आएगा ||

२) भंग के नशे की तरह : इसको मैं एक तारीफ की तरह लूँगा क्यूँकी यदि मेरी रचना किसी को किसी भी प्रकार से मदहोश करने में सक्षम है तो ये इस कृति कि विजय है ||

३) ओरिजनल
: मैं आपकी इस बात का पुरजोर बिरोध करता हूँ (ये विरोध आपका नहीं सिर्फ इस एक शब्द का है ) || मैं आपको challenge नहीं कर रहा हूँ पर अपने ऊपर भरोसा करते हूँ कह रहा हूँ कि यदि आप अपनी बात को किसी भी प्रकार से सिद्ध कर सकें तो मैं लिखना छोड दूँगा इतना ही नहीं अभी तक कि सभी रचनायों को नष्ट करने (ब्लॉग के साथ) का भी बिश्वास दिलाता हूँ ||

४) दूसरों का भला : ये शायद किसी भी कलाकार के जिंदगी का सबसे बड़ा मुकाम होगा यदि उसकी कला किसी दूसरे के काम आ सके || अभी मैं अपने आप को इतना सक्षम नहीं मानता पर यदि आप जैसे महानुभावो का साथ मिला तो कोशिश कि जा सकती है ||

एक बात जो आपकी प्रतिक्रिया में नज़र नहीं आई वो यह है कि आपने ये तो बता दिया कि त्रुटि है पर ये नहीं बताया कि त्रुटि है कहाँ , यदि इस बात कि और मेरा ध्यान खींचने का कष्ट करेगे तो सुधार कि दिशा में बढ़ने में आसानी होगी || कृपया ब्लॉग पर आते रहें और बेहिचक टिपण्णी देते रहें |||


आदरणीय समीर जी / कुवंर जी ,

गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है ,गढ़-गढ़ काटे खोट,
अंदर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट ||
आप दोनों के समर्थन ने आज ये विश्वास दिलाया है कि मंजिल अब दूर नहीं || जब आनद जी बाहर से चोट मरेंगे और आप जैसे बरिष्ट लोग अंदर से सहारा देंगे तो ये कोरी मिटटी कभी न कभी तो घड़े कि शक्ल ले ही लेगी || परन्तु समीरजी मैं क्षमाप्रार्थी होने के साथ ये कहना चाहता हूँ कि मैं आपकी सलाह नहीं मान सकता
|| बड़े खुशनसीबो को ऐसी टिप्पणियां मिलती है, इनको नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता || मैं आपकी चिंता समझ सकता हूँ कि आप बड़ी मेहनत से लोगो को लेखन और ब्लॉगजगत से जोड़ते हैं और यदि कोई ऐसी टिपण्णी को दिल से लगाकर लेखन से बिमुख हो जाये तो ये आपको ठेस पहुंचाता है || मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इतना कमज़ोर नहीं हूँ ||
वैसे आपका डर बिलकुल सही है क्यूंकि इस दुनिया मैं बिघ्नसंतोषी लोग भी पाए जाते हैं परन्तु जब तक हम उनके अभिप्राय को नहीं समझ लेते तब तक हम उन्हें अपना शुभचिंतक ही समझते रहेंगे || उनकी इस टिपण्णी के कई कारण हो सकते हैं जैसे वो घड़े को सही शकल देना चाहते हों, या फिर घड़े को फोडना ही चाहते हों या फिर ये भी हो सकता है कि वो इस तरह कि टिपण्णी करके मेरी उदासी से ध्यान भटकाना चाहते हों ( वैसे होने को तो ये भी हो सकता है कि सानिया कि शादी का गुस्सा मेरे ब्लॉग पर निकला हो ) खैर जो भी हो हम लिखते रहेंगे , लिखते रहेंगे |||
4 Responses
  1. ये बात बढ़िया लगी की आपकी सोच सकारात्मक है
    गुरु जी के ब्लॉग पर गजल की क्लास चल रही है
    आप भी आयें पुराणी पोस्ट पढ़े
    आपको लाभ मिलेगा
    गजल के बारे में कुछ और जान पाएंगे ऐसा विशवास है

    लिंक मेरे ब्लॉग से ले सकते हैं

    - वीनस


  2. मुद्दा है बने रहो, लिखते रहो.

    अच्छा है कि तुम विचलित नहीं होते इन बातों से. अक्सर नये आये साथी इन बातों से विचलित हो पलायन कर जाते हैं.

    किसी भी बात को कहने का एक सलीका होता है, जब लोग उस सलीके को ही नहीं दर्शाते तो उनसे किस सलाह की उम्मीद रखें, यही वजह है कि मैं उन्हें नजर अंदाज करने की सलाह देता हूँ वरना तो निश्चित ही आलोचनाओं का सम्मान करना चाहिये, उनसे सीखना चाहिये. बस, भाषा की मर्यादा का पालन हो. आलोचना कटु ही हो, यह तो जरुरी नहीं.

    अनेक शुभकामनाएँ.


  3. मेरी विस्तृत टिप्पणी इससे पहले वाले लेख पर है।
    'टिपण्णी' नहीं 'टिप्पणी' होती है। :)


  4. शोभित जी ... हवा में उड़ा दो ऐसी बातों को ...
    आपका न लिखना महें तो वैसे भी खटक रहा था ... अब रेग्युलर हो जाओ ...


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