शोभित जैन
दिल फिर से धडकने को तैयार ना होता ,
नज़रें जो ना मिलती , तो प्यार ना होता

कुछ तो खता है, तेरी खामोश रजामंदी की भी,
वरना इश्क का भूत, सर पे सवार ना होता

उँगलियों की उलझन का काला जादू चल गया,
भला-चंगा बंदा भला फिर यूं बेजार ना होता

तिरछी निगाहों का घाव है , भरते भरते भरेगा ,
तलवार से मारा होता तो इतना असरदार ना होता

डाक्टर से दोस्ती अब उम्र भर निभानी है ,
कुछ और कहती लकीरें, तो मैं बीमार ना होता
2 Responses
  1. Shah Nawaz Says:

    बेहद खूबसूरत रचना....बहुत खूब!


  2. शोभित जी ... कुछ तो ख़ास है ...
    बहुत ही जबरदस्त शेर निकले हैं ...


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