शोभित जैन
तुमने मेरे सपनों को समझा ,
मेरे करीबी , अपनों को समझा !!

पैदाइशी फितरत को समझा ,
तारे, राशी , नक्षत्र को समझा !!

खामोश उदासी, तन्हाई को समझा ,
ज़माने की रुसवाई को समझा !!

सीमायें समझी , हक को समझा ,
फ़िज़ूल सी बक-बक को समझा !!

एक बेचारा दिल बच गया ,
जिसको छोड़कर सबको समझा !!
5 Responses
  1. खूबसूरत शिकायत!! शानदार रचना!!!


  2. उफ़!बस सब कुछ समझा
    मगर जिसे समझना चाहिये था
    उसे ही ना समझा


  3. POOJA... Says:

    हाँ... ये अक्सर होता है... जिसे समझना चाहिए लोग उसी को नहीं समझते... बेहद सुन्दर रचना...


  4. सुज्ञ जी , वंदना जी , पूजा जी

    धन्यवाद ....कम से कम आप लोगो ने तो समझा ....


  5. बेनामी Says:

    dil tera khjana hai 1 pak mohabbat ka taha pa na ska koi sagar hai tu ulfat ka.


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