शोभित जैन
बहुत कशमकश के बाद आख़िर मैंने फ़ैसला किया की मेरा पहला नजराना उस नज़र की नजर होना चाहिए , जिसने मेरे जीवन को अहसास और अहसासों को लफ्ज़ दिए
मैं तहे दिल से आभारी हूँ , उन दो निगाहों का जिसने मेरे जज्बातों की ज़मीन पर अहसासों के फूल खिलाये
मेरी पहली कविता मेरी चंद लम्हों की सफलतम प्रेम कहानी के नाम
जिसकी आज भी यादें शेष हैं .......

तबियत भी ठीक थी , दिल भी बेकरार न था...
वो वक्त और था, जब किसी से प्यार न था

होश में रहते थे हम , आँखों में यूं खुमार न था ....
अदायों से अनजान थे , पागलो में शुमार न था वो वक्त और था .....

बेसब्र तो पहले भी बहुत थे हम ,
पर हर वक्त किसी का यूं इंतज़ार न था
तसवीरें भी बहुत देखी थी मगर ,
हर तस्वीर के लिए दिल दीवार न था

वो वक्त और था , जब किसी से प्यार न था

बात निगाहों से होकर दिल तक पहुँचेगी,
इल्म इसका हमको सरकार न था
खता होनी थी सो हो गई निगाहों से ,
दोनों में कोई कसूरवार न था

वो वक्त और था , जब किसी से प्यार न था .............

लेबल:
1 Response
  1. Unknown Says:

    der aaye durust aaye.....
    tum dil ke aur kareeb aaye !!!
    aaye to bas aise aaye...
    wah wah bahut khub aaye..!!!


एक टिप्पणी भेजें