शोभित जैन
पिछली पोस्ट पर आदरणीया संगीता पुरी जी की एक टिपण्णी मिली....टिपण्णी क्या एक प्रश्न पुछा था

बस उसी का जबाब देने की कोशिश की है इस पोस्ट
में.......



मयस्सर नहीं था...

जिसके बिना ज़िंदगी में मेरा गुज़र नही था,

बस वही तो इस जहाँ मे मयस्सर नहीं था !!!!



दिल में संजो रखूं यादों को,

सुहाना ऐसा तो कोई सफर नही था !!!!



ऐश की ज़िंदगी बिताते रहे बंगलों में,

सुकून की साँस लेने कोई घर नहीं था !!!!



साँसे टूटी मंजिल से कुछ फासले पर,

चन्द लम्हों का खुदा को सबर नहीं था !!!!



ज़िंदगी भर भटका आसरे की तलाश में,

लोग कहते रहे की वो बेघर नहीं था !!!!
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12 Responses

  1. धन्यवाद की अधिकारिणी तो आप हैं....आप के कारण एक और पोस्ट का बन गई....



  2. शशक्त रचना खूबसूरत शेरोन की दास्ताँ


  3. बहुत सुन्दर!! इस बहाने एक और रचना पढने को मिल गई।धन्यवाद।


  4. बहुत अच्छे शेर।


  5. अच्छी रचना . धन्यवाद


  6. बेनामी Says:

    waah waah shobhit ji...ati sundar...


  7. wah wah....
    lagta hai gehri home sickness hai....


    aap hi ke kafiyea main:



    kis sher ki taarif karun mere dost,ki,

    doosra wala bhi, pehle se kamtar nahi tha.


  8. and thanks for coming to my new blog....
    it's promise that it would be different kinda blog!{ not different like tomato ketchup of javed jafari :) }


    however it would have(Most of the time) my old creations....


  9. ज़िंदगी भर भटका आसरे की तलाश में,

    लोग कहते रहे की वो बेघर नहीं था ..


    -क्या विडम्बना है..उम्दा चित्रण शब्दों के माध्यम से.


  10. daanish Says:

    "bs wahee to is jahaaN meiN
    myassar nahi tha..."

    waah !
    bahut khoob !!
    dil se likhi gyi achhi rachnaa...
    badhaaee . . . . .
    ---MUFLIS---


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