शोभित जैन

फरबरी २००८ : चेन्नई एअरपोर्ट

लो भाई आख़िर एक किसान का बेटा आज एयरपोर्ट तक पहुँच ही गया...ट्रक्टर से एयरबस तक के सफर की कुछ खट्टी मीठी यादें अपने सूटकेस में भरकर, उसका एक हिस्सा हाथों में थामे हकीकत की ज़मीन पर घिसटते हुए मैं एअरपोर्ट की लॉबी मैं घुस गया....पर बहुत खोजने पर भी पहली उड़ान का उत्साह खोज नही पाया...शायद तन्हाई का अहसास उस उमंग पर भारी पड़ गया था........

नियत समय पर नियत स्थान से होते हुए नियत सीट पर बैठ गया...सब कुछ नियत....दिल मे बैठे बच्चे को खेलने की कोई जगह नहीं.........पता नही इंसान मशीनों को चला रहे है या मशीनें इंसानों को.....खैर......

नकली मुस्कान चेहरे पर चिपकाये लोगों के द्वारा स्वागत हुआ...और थोडी देर मे सीट बेल्ट बांधने का निर्देश गया......और उड़ने की खवाहिश ने ज़माने की रवायतों को अपने चारों ओर लपेट लिया........और फिर धीरे धीरे उड़ान की आकांक्षा मे ज़िन्दगी पहियों की तरह घिसने लगी......जैसे-जैसे यान रफ़्तार पकड़ रहा था चीज़ें पीछे छूट रही थीं......शायद गति का एक नियम ये भी है की हम जितने गति से आगे बढ़ते हैं उतनी ही गति से चीजें पीछे छूट जाती हैं, और जो चीज जितने नज़दीक होती है वो सबसे पहले और सबसे तेज़ जुदा होती है..और जो हमसे जितने फासले पर होता है उतना देर हमारे साथ रहता है........ धीरे - धीरे लुका- छिपी खेलने वाले मकान, फर्राटे से बाइक दौड़ने वाली सड़कें, और जश्न मनाने वाले शहर छोटे होते होते नज़रों से ओझल हो गए और पहुँच गए हम आकाश के अनंत ऊँचाई को मापने.........ऊँचाई चंद पलों की

6 Responses
  1. mamta Says:

    अरे बड़ी ही दार्शनिक बातें आपने लिख दी है ।


  2. आपके संस्‍मरण में पहली बार उडान भरने की खुशियों की झलक नहीं मिल पा रही है....कोई खास वजह ?


  3. जीहाँ जनाब , दिल में बैठे बच्चे को खेलने की जगह के साथ-साथ साथी की भी जरुरत होती है |
    बहुत सही अभिव्यक्ति दी है , तन्हाई का अहसास उस उमंग पर भारी पड़ गया |


  4. बहुत अच्छा लिखा है बधाई


  5. अलग अंदाज में baandhaa है दिल के कोमल natkhat bacche को...........
    मन ही मन में सब का अनुभव ऐसा ही होता है, khoob लिखा है


  6. बहुत तसल्ली से अहसासों को शब्द दिये हैं. बहुत बढ़िया. पढ़कर एक फलसफा से लगा. गद्य में और लिखिये. ताकत है आपमें-शुभकामनाऐं.


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