ये है ब्लॉगजगत और हम सब ब्लॉगर.....पर ये है क्या और क्यूँ हम अपना समय यहाँ लगाते हैं....क्या ये एक ज़िम्मेदारी है ? या एक सुविधा ? या एक हथियार कुछ भी करने के लिए, कुछ भी कहने के लिए.......इसी उधेड़बुन में बहुत समय खपा दिया.....पर जब मंथन हुआ है तो गरल या अमृत कुछ तो निकलना ही था तो कुछ निकला...और जो निकला वो आपके सामने रख रहा हूँ....पता नहीं ये क्या है...पर जो भी है आपके सामने है..पढिये और हो सके तो मुझे भी बताइए....
जहाँ तक मेरा विचार है तो मुझे लगता है की हम लोग इस ब्लॉगजगत में भी ज़िन्दगी को कुछ अलग तरह से जी सकते हैं...कुछ इस तरह.....
चलो ज़िन्दगी को लफ्जों में सजाएं...
सुख को जोडें, दुःख घटाएं....
शब्दों को तपाकर मलहम कर दें, फिर
किसी के आँसू चुराएँ , किसी के दर्द सहलाएं...
चलो ज़िन्दगी को...
सच को कहना हुनर ही नहीं जिगर भी है,
आओ आइना बनें , समाज को शक्ल दिखाएं...
चलो ज़िन्दगी को...
ये सफर ख़त्म नहीं होगा, किसी मंजिल के बाद
कभी रास्तों की नियामत निहारें, थोड़ा सुस्तायें...
चलो ज़िन्दगी को...
हम क़द्र करते हैं तुम्हारे हुनर की,
छोटी सी टिपण्णी से उसे भी बताएं...
चलो ज़िन्दगी को...
चलो ज़िन्दगी को लफ्जों में सजाएं...
सुख को जोडें, दुःख घटाएं....
जहाँ तक मेरा विचार है तो मुझे लगता है की हम लोग इस ब्लॉगजगत में भी ज़िन्दगी को कुछ अलग तरह से जी सकते हैं...कुछ इस तरह.....
चलो ज़िन्दगी को लफ्जों में सजाएं...
सुख को जोडें, दुःख घटाएं....
शब्दों को तपाकर मलहम कर दें, फिर
किसी के आँसू चुराएँ , किसी के दर्द सहलाएं...
चलो ज़िन्दगी को...
सच को कहना हुनर ही नहीं जिगर भी है,
आओ आइना बनें , समाज को शक्ल दिखाएं...
चलो ज़िन्दगी को...
ये सफर ख़त्म नहीं होगा, किसी मंजिल के बाद
कभी रास्तों की नियामत निहारें, थोड़ा सुस्तायें...
चलो ज़िन्दगी को...
हम क़द्र करते हैं तुम्हारे हुनर की,
छोटी सी टिपण्णी से उसे भी बताएं...
चलो ज़िन्दगी को...
चलो ज़िन्दगी को लफ्जों में सजाएं...
सुख को जोडें, दुःख घटाएं....
चलो, ऐसी ही कोशिश करते हैं..देखो..कहाँ तक सफल हों. :)
वाह्!क्या बढिया बात लिखी आपने कि हम अपना कितना समय लगाते हैं ब्लोग लिख्नने मे रोज़.
काश! अगर इसके भी पैसे मिलते तो हममे से कई लोग लाखो रुपये इसीसे कमा लेते.
बहुत ही बडिया कोधिश है हम तहेदिल से आपके साथ हैं भगान आपकी आशाओं को सफल करे बहुत सुन्दर भावों के लिये ब्धाई
(शोभित भाई ,
इतना अच्छा लिखते हो कि कुछ lines जोड़ने का ख़ुद ब ख़ुद मन हो जाता है .
क्षमा करना रोक न सका अपने आप को (फिर से ...):
दिया नहीं आँगन में कोई ,
चाँद छुप गया गठरी में , उसे चुराएं.
चलो ....
ये छोटा परिवार हमारा ,
निर्भय हो के विश्व बनाएं , सभी बढाएं.
चलो.....
(PARIVAAR=BLOG & BLOGGERS)
शब्दों को तपाकर मलहम कर दें, फिर
किसी के आँसू चुराएँ , किसी के दर्द सहलाएं...
सफल प्रयास है आपका...........जिंदगी को ब्लॉग द्बारा खोजने का..........पर आपकी रचना भी गहरे अर्थ लिए है
aap to apne sabdo se jaadu bikher rahein hain....
kabhi fursat mein yaha tashreef le kar aayiye ..
http://merastitva.blogspot.com
shobhit ji.. aap kripya mera ye blog follow kijiye.. mujhe aapse bhot seekhne ko milega .agar aap har lekhan par apni tippni denge to..
mera astitva
p.s. maine jhoothi taarif nahi ki..aapke shabd vaakayi tareef ke kaabil hain..
mere blog ka link hai
http://merastitva.blogspot.com
blog follow karne ke liye bahut bahut dhanyawaad shobhit ji..
kisi ke aansu churaye ne yaad dila diya vo khna ghar se masjid hai bhut door.........
बहुत अच्छी कविता है।