शोभित जैन
शाम के चार बजे , दिल के तार बजे ...

हर ध्वनि लगे शहनाई
मन मधुवन में मचले अमराई
नवंकृत हो मचले तरुणाई
रहस्यमयी मुस्कान अधरों पर सजे...
शाम के चार बजे, दिल के तार बजे ...

रुनझुन
-रुनझुन करती धड़कन ,
सांसों में है अपनापन,
दिल दिमाग में चलती अनबन,
प्राण जा कहीं और बसे...
शाम के चार बजे , दिल के तार बजे ...

रातें
हो गयीं गुमसुम-गुमसुम
हो गए सारे हवास भी गुम,
जाने कौन हो कहाँ हो तुम ?
जिससे मिलने मनवा तरसे
शाम के चार बजे , दिल के तार बजे ...

शाम के चार बजे , दिल के तार बजे ...

(
हिंदी से प्रेम करने और हिंदी में प्रेम करने का एक प्रयास .. )
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7 Responses
  1. ये चार बजे ही क्यों दिल के तार बजते है? दफ्तर से छुट्टी होने वाली है? अच्छी रचना है बधाई।


  2. क्या बात है शोभित जी, चार का चमत्कार क्या है?



  3. सुन्दर। कामना है ये तार यूँ ही बजता रहे।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com


  4. शोभित जी .......... ये चार बाज ही क्यों .......... क्या किसी की छुट्टी होती है ४ बजे ...........
    बहुत ही सुंदर रचना है ..........


  5. दिल दिमाग में चलती अनबन
    प्राण कहीं और जा बसे...

    वाह वाह वाह जैन साहब वाह...बहुत सुन्दर रचना...
    नीरज


  6. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.


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